Wednesday 19 December 2012

मुझे डर लग रहा है


वो ICU  से बाहर निकल आई .. वहाँ का माहौल अच्छा नहीं लग रहा था .. मद्धिम रौशनी में सब कुछ धुंधला सा दिख रहा था। उसने देखा डॉक्टर्स और नर्स बिस्तर पर लेटे हुए  मरीज को पता नहीं क्या क्या ट्रीटमेंट  दे रहे थे। पर उस शरीर में कोई हरकत नहीं हो रही थी .. लेकिन डॉक्टर्स पूरी मेहनत  कर रहे थे .. उसमे जान डालने की, उसे जिलाए रखने की और शायद उसे बोलने के काबिल बनाने की भी। पर उस से ये सब देखा नहीं गया .. एक  ज़ख़्मी और बीमार शरीर पर दवाइयां और जीवन रक्षक उपकरण अपना काम कर रहे थे।

वो बाहर आ गई .. ताज़ी हवा में सांस ली .. उसे महसूस हुआ कि  अब वो थकी हुई नहीं है और कल रात वाला दर्द और गले से लेकर सारे शरीर में फैलती कैक्टस जैसी तीखी बैचेनी और तकलीफ  भी नहीं है .. शायद ये अच्छी  नींद का असर है  .. उसने  सोचा .. फिर बरामदे में चली आई .. 

"माँ और पापा कहाँ है?"  

फिर नज़र पड़ी .. पापा एक बेंच पर बैठे थे .. एक सपाट भावशून्य चेहरा, जाने कहाँ देखती आँखें और उनसे रुक रुक कर बहते आंसू .. वो डर  गई .. 

"पापा .. पापा ... " उसने आवाज़ दी "माँ कहाँ है, दिख नहीं रही?"  कोई जवाब नहीं मिला .. उसे और डर  लगा,  उसने पापा का कन्धा हिलाया धीरे से पर कोई हरकत नहीं कोई जवाब नहीं .. अब उस से बर्दाश्त नहीं हो रहा .. इधर उधर देखने लगी, ढूँढने लगी .. माँ  कहाँ है .. पर किसी ने कुछ नहीं बताया जैसे किसी ने सुना ही नहीं .. बरामदे में अजीब पीली रौशनी है, सब कुछ धुंधला और उदासी में डूबा लग रहा है ... अब उस से खडा नहीं रहा गया .. बैठ गई पापा के पास उनका हाथ धीरे से पकड़ लिया .. 

फिर एक बार कहा " मुझे डर  लग रहा है .. मम्मी को बुला दो, कहीं नहीं दिख रही।"   

तभी भाई को आता देखा, वो सीधा ICU चला गया . उसे कुछ हिम्मत बंधी वो भी पीछे पीछे गई .. भाई डॉक्टर से बात कर रहा है .. रो रहा था ..

"क्या हुआ .. माँ कहाँ है , कुछ बोलता क्यों नहीं ...?" वो भाई  के सामने खड़ी  थी पर वो डॉक्टर्स की बात सुन रहा था।  

 उसने  देखा कि डॉक्टर अब सारे जीवन रक्षक उपकरण हटा रहे हैं ..नर्स सफ़ेद चादर से मरीज़ को  ठीक से ढक  रही है .. उसने पास जाकर देखने की सोची .. नर्स अब बस चेहरा भी ढकने वाली थी जब उसने देखा .. आँखें बंद जैसे कोई चैन से  सोया हो ..एक थका हुआ .. पीला कमज़ोर चेहरा। वो हट गई ..वापिस बाहर आ गई .. फिर से पापा के पास बैठने ही वाली थी कि  किसी ने उसका हाथ पकड़ा और ले जाने लगा .. कौन है, कहाँ ले जा रहा है .. उसने पूछना चाहा पर किसी ने जवाब नहीं दिया बस उसका हाथ पकडे ले जाता गया .. 


और उस पर फिर से गहरी  नींद और बेहोशी तारी होने लगी। कुछ याद नहीं रहा उसके बाद।     

आँख खुली ..चारों तरफ रौशनी है, सफ़ेद और पारदर्शी ...  बहुत सारे लोग हैं .. औरत, मर्द, बच्चे .. अलग अलग  उम्र और रंग रूप के ..सब खड़े हैं .. उसे साथ लाने वाला  अब पता नहीं कहाँ है।  पता नहीं क्या हो रहा है .. तभी उसने महसूस किया कि आस पास खड़े लोग उसे घूर रहे हैं ऐसे देख रहे हैं जैसे कुछ बहुत अजीब हो .. उसकी कुछ समझ में नहीं आया .. तभी नज़र पड़ी सामने लगे किसी आईने पर .. उसने देखा खुद को उस आईने में ...

एक कटा फटा शरीर .. क्षत विक्षत अंग .. जगह जगह लगी चोटें और घाव जिनसे बहता खून .. चेहरा बिगड़ गया था क्योंकि उस पर कई ज़ख्म थे। टांगों पर ऊपर से नीचे तक  जगह जगह कटने के निशान  थे कहीं कहीं तो मांस बाहर निकल आया था। बाकी शरीर की हालत भी कमोबेश ऐसी ही थी।  सर से पैर तक काली  स्याह रंगत थी उसके शरीर की .. और वो खून जो लगातार  ज़ख्मों से बह रहा था उसका कुछ गन्दा सा लाल और काला  रंग उसे और भी ज्यादा भयानक और बदसूरत बना रहा था।   

वो आगे कुछ देख ना सकी .. बीती रात याद आ गई और वो चीख कर धम्म से  नीचे बैठ गई ..बदहवास, बेबस और बेजान .. 

उसकी चीख सुन कर उस शांत माहौल में भी हलचल हुई  और फिर किसी ने ऊँची लेकिन बेहद सर्द और संजीदा  आवाज़ में कहा ..
"इसे ले जाओ और वहाँ बाकी सबके साथ रखो .. इसकी आत्मा पर लगे दागों और ज़ख्मों को मिटाने में बहुत वक़्त लगेगा .. इसके लिए एक नया साफ़ सुथरा और स्वच्छ शरीर मिलने में अभी वक़्त लगेगा।  .. अभी बहुत वक़्त लगेगा तब तक इसे यहीं रखो फिलहाल इस आत्मा के लिए कोई शरीर, कोई ठिकाना  मेरी बनाई धरती पर मयस्सर ना होगा। " 

उसने सुना, सर झुकाए वहीँ बैठी रही .. कोई आया और फिर से उसे कहीं  ले जाने लगा .. और वो चलती गई ..


15 comments:

Dr. Naveen Solanki said...

:((( बहुत दर्दनाक विवरण है भावना जी .... आँखें नम हो गयी व्यथा पढ़कर ....॥ सचमुच दुनिया मे दरिंदगी हद से ज्यादा बढ़ती जा रही है ....21 -12 की भविष्यवाणी सत्य ही हो जाये तो अच्छा ......ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः

Chanchala said...

बहुत भावना पुर्ण वर्णन है ....दिल रो रहा है मन चिल्ला रहा है,काश कुछ कर पाए..सारी हदे पार हो गई ,अब तो सचमुच का प्रलय ही आ गया है ,इंसानियत के नाम पर

Chanchala said...

इस घटना के बाद तो सचमुच प्रलय ही आ गया,आपकी लेखनी में बहुत दर्द है.जिसे पढकर रोंगटे खड़े हो गए ,लेकिन जिसने भुगता है........हें भगवान

Yashwant R. B. Mathur said...

यह डर लगना स्वाभाविक है। मन को उद्वेलित करता शब्द चित्र।


सादर

Bhavana Lalwani said...

Thank u Yashwant ji

Bhavana Lalwani said...

Thank u Chanchala ji .. jis par guzri uski takleef ka ham andaza bhi nahin lagaa sakte

Bhavana Lalwani said...

haan ab kuchh toh solution nikle

RAJANIKANT MISHRA said...

achchha likha hai....... 1994 july ki ek dopahar dekha ek sapna yaad aa gya.

Bhavana Lalwani said...

Thank u .. toh ab us july ki dopahar ka kissa bayaan bhi kijiye

Anonymous said...

Gud use of words Bhavana. Capable of forming a picture frame in the readers mind. Thank you.

AnonymousNerd said...

Beautifully penned down

a gal in city said...

ओह...ये बहुत ही दर्दनाक है...
पिछले महीने ही मैं भी एक ऐसी ही अवस्था से निकली हू....
जहाँ एक तरफ़ चिकित्सकों ने कहा हमे नही बचा सकते
वहीं हॉस्पिटल मे मरीजों की हालत देख कर लगा की हम ठीक है

a gal in city said...

ओह...ये बहुत ही दर्दनाक है...
पिछले महीने ही मैं भी एक ऐसी ही अवस्था से निकली हू....
जहाँ एक तरफ़ चिकित्सकों ने कहा हमे नही बचा सकते
वहीं हॉस्पिटल मे मरीजों की हालत देख कर लगा की हम ठीक है

Bhavana Lalwani said...

@A gal in city

thank u for reading and sharing your experiences. keep in touch.

Anita Sabat said...

Very touching, Bhavana.
Gosh!
Thanks for sharing.
As you had shared this, I knew it was about Nirbhaya.
But, I guessed that you were referring to her soul after her death.
Wonderfully expressed.
Even her soul needs so much time to get over the beastly act...